Thursday, November 22, 2007

सपनो से कहीं ख़ूबसूरत यार हमने पाया,
नय्मत उस खुदा कि जिसने तुम्हे बनाया,
खुशगवार है कितना आज ये दिन,
बहुत बहुत मुबारक तुम्हे ये जन्मदिन.........

भटकता था कहीं मंजिल कि खोज मैं,
रस्ते पर चलना उस हमसफ़र ने सिखलाया,
दूर था खुदा कि रहमत से अब तक,
सुकून उसके दामन का तुमने महसूस करवाया

आये ये खुशियों भरा दिन बार बार क्योंकि
आज इस दुनिया मैं आया था
मेरा प्यार..........

एक पल है जाता और दूजा है आता,
पूछे मन बावरा,
ये थम क्यों न जाता,
क्या है कोई नुस्खा कि समय के पार मैं जाऊ,
दामन मैं मेरे यार के थोडी खुशियाँ और सजांऊं,
जन्मदिन कि हार्दिक शुभकामनाये..........
हर दौड की वही मंिजल है पाता,
हर चहरा एक सा नजर है आता,
हर आवाज में स्वर एक है सुनता,
ये बावरा मन बस तुम्हें है ढूंढता
तनहाइयों को गले हैं लगाते,
खयालों में तस्वीर हैं बनाते,
याद कर भरी महिफल में हैं शरमाते,
बेचैन इस कदर,
करवटों में रात हैं बिताते
इब्तदा-ए-इश्क है रोता है क्या,
आगे-आगे देख होता है क्या
ख्वाब न हो तो कहाँ होगी मंिजल,
मंिजल न हो तो कहाँ होंगे रास्ते,
रास्ते न हो तो कहाँ होगी अारजू़,
अारजू़ न हो तो कैसी होगी िजं़दगी

चाहत न हो तो कैसे होगी बेकरारी,
बेकरारी न हो तो कहाँ होगा इंतजा़र,
इंतजा़र न हो तो कैसे होगी िमलने की खूशी,

खूशी न हो तो कैसी होगी िजं़दगी
तन्हा न हो तो क्यों रोएगा िदल,
िदल न रोए तो कैसे होगा द्रद,
द्रद न हो तो कैसे होगा अहसास िमठास का,

िबन िमठास कैसी होगी िजं़दगी
नजा़कत न हो तो कहाँ होगी वो अदा,
अदा न हो तो कहाँ होगी खूबसूरती,
खूबसूरती बगैर कैसा होगा बालम,

बालम के बगैर कैसी होगी िजं़दगी
िदवानगी न हो तो कैसे होगा जूनूं
,जूनूं न हो तो कैसे होगी रवानगी,
रवानगी न हो तो कैसे रहेगा ग्रम लहु,

िबन ग्रम लहु के थम जाएगी िजं़दगी
This heart
Reading those few word from her
my heart starts beating harder worries fade,
sadness turnes into a smile

This heart plays emotional games
Beautiful thoughts tingle my सोल
Leave it!
Cries someone again and again
Befuddled,
I laugh at my situation,
cursing dunno why,
this heart plays emotional games
not something which happens only once,
comes back again like spring seasons,
may end peaceful this time though,
this heart will again play emotional games.
ये िदलपढ कर वो चंद शब्द उनकेे,
अहसास धडकनो का लगे बढ़ने,
होठ़ों पर आ जाए िभनी सी मुस्कान,
ये िदल खेले भावनाअों से खेल ।

छेड़ें मन के तार कुछ ख्याल,
अूंहूं छोड़ो इसे...
, कहे कोइ बार बार,
इस अजीब उलझन में पडे़ लगूँ हंसने,
जाने क्यों खेले ये िदल भावनाअों से खेल ।

िकस्सा नहीं ये िसर्फ इस बार का,
लोट़ अाता है जैसे मौसम बहार का,
अभी तो शायद ये जाए बीत,
परिफर खेलेगा ये िदल भावनाअों से खेल ।
वो कहे िक हम
िशकवे बहुत हैं करते
,अौर साथ ही खुशी का इज़हार कम हैं करते,
अौर बदलने िक कोिशश भी ंनही करते,
हमारी उनसे ैहैं,
इक गुज़ािरश कि इन
होठों पर है मुस्कान अौर शब्द सर्द,
कर मत ये ग़म ग़लक हो के बेखबर,
रात अौर िदन,
आँसूं अौर हंसी,
जी ले एक भरपूर,
पाएगा दूसरा तभी,
िछपा न खुदको इनकी आगोश में,
खुल कर बाहर न आ पाएगा तू कभी ।
तुम में है
अनंत का सार,
तुम देती ॐ को आकार,
जमों तो लो िशव-िलंग का रूप,
िपघलो तो हो अमिर्त,
इक जीवन स्वरूप ।
िहमालय िक चोटी पर तुम हो सवार,
करना चाहे ये िदल एक साक्शातकार,
िकसी ने ये भी खूब कहा है,
िकदूर इतनी िक पास जाना है
किठन,िमले तो, मौत भी गवारा उस िदन ।
सांसों से है िजंदगी का आधार,
शब्दों में है िजंदगी का सार,
संगीत से है िजंदगी में खूबसूरती,
िबना पंक्ित के लगती ये अधूरी ।
इक िदन बादलों िक छाई हुई थी घटा घनघोर,
हो के मदमस्त नाच उठे छत पर मनमोहक मोर,
जाने क्यों लगा िक ले गया मन का चैन कोई िचत्तचोर,
रह गया मैं स्तब्ध हत्तपर्भ,
मचा भी न सका शोर ।

कुछ पल के िलए हुआ परेशान,
क्यों िक,
ढूँढ पाना उसको नहीं था आसान,
अचानक हुआ एक ये अहसास,
शायद हो वो यहींं कहीं आस पास ।

परेशानी और डर ने था मन को घेरा,
िक कहीं िकसी ने हम पर जादू-मन्तर तो नहीं है फेरा,
ऐसे में उस खास दोस्त का आना,
और प्यार से बैठा ेके समझाना ।

िक होता है सभी को िजंदगी में एक बार,
लुट जाती है रातों िक नींद और िदल का करार,
ऐसी हालत में ठीक नहीं चुप्पी साधे रहना,
ना तो कभी ना लौटेगा िदल का सुख और चैना ।

नाम न जानूं पता न जानूं,
अजब उलझी ये गुत्थी है,
सुलझाने िक कोिशश में,
फंस जाती ये उतनी है ।

पर मन में उसकी अधूरी सी छवी है,
िक मानोसर्द मौसम के धुंधलाए शीशे के पार खडी है,
क्यों मैं अपने आप को झुटला रहा हूँ,
जाने क्यों सच्चाई से पीछा छुडा रहा हूँ ।

िहम्मत जुटाई बढ़ कर शीशे को पौंछने की,
बोला कोई,
नहीं जरूरत अब कुछ सोचने िक,
देर न कर,
अपनी तृष्णा को शांत कर ले,
हठी न बन,
इकरार कर ले ।

हटाते ही वो पानी िक बूँदें,
िसर चकरा कर लगा घूमने,
ये क्या हो गया था मुझको िक,
अब तक पहचान भी न सका उसको ।

वो कहते हैं, देर आए दुरूस्त आए,
देख कर उन्हें अगले िदन,
थोड़ा शरमाए घबराए,
ईशारे कुछ ना कुछ तो कह गए,
चुप चाप ही हम खड़े रह गए ।

अचानक प्यार से िकसी ने पुकारा,
कहीं तो ध्यान भटक गया है तुम्हारा,
बािरश का आनंद तो लो ही,
पर गरमा-गरम चाय-पकोड़े चखो तो सही ।

Saturday, September 15, 2007

शाम कि तनहाइयो में,
रात कि गहराइयो में,
कठिनाइयो के धुंधलके में,
कभी ना घबराना आप,
चाहे खडे पहाड़ हो या,
हो उंचे नीचे पथरीले रास्ते,
कभी ना रूक जाना आप,
आग के इस दरिया को,
कर जायोगी पार आप,
ये है मुझे पुरा विश्वास,
जिंदगी के हर उस मोड़,
पर आप मुझे,
हमेशा अपने साथ पायोगी,
जनमदिन के इस,
शुभ अवसर पर,
मिले खुशियाँ आपको,
ढ़ेर सार्री,
इससे बड़ा आपके,
जीवन में हो,
नही सकता बड़ा,
कोई भी उपहार,
मेरी तरफ से,
आपको इस
जन्मदिन पर,
ढ़ेर सारा,
प्यार।



लेखक :-

अधर कुमार रस्तोगी



Wednesday, September 5, 2007

अलविदा जिंदगी

इस रात कि कोई सुबह नही
येः रात खतम होती ही नही
हर बार का काला अँधियारा
बढता ही जाता है
हर दिन को अपने में,
काले सायों में
भरता ही चला जाता हूँ,
अब ये रात कभी ख़त्म होगी ही नही
इंतज़ार ख़त्म हुआ
अब यहाँ
कोई उम्मीद कि किरण बची ही नही
अब मे पूरी ही टूट गया हूँ
अब के कभी जी पायूँगा नही
हसी मेरी विलुप्त हुई
गम के अमीन में अब डूब गया
हाथ कोई पक्डेगा नही
बस अलविदा कहता हूँ
अब तुझसे जिंदगी
बहुत जी कर देख चूका हूँ
अब मौत के सुखद आंगन में
खिलती मृत्यु कि गोद में
बस सो जायूँगा
ना जागने के लिए कभी,
अलविदा जिंदगी , अलविदा जिंदगी

में चलता गया

में चलता गया
पथरीले रास्तों पर,
गिरता रह खा खा खा ठोकर
कि ठोकर लगी कई कई बार
जख्मी हुआ कई बार मगर
दिल मे रौशनी जलाये रखा
खुदा तेरे नाम का
रौशनी जलाये रखा
जब भी तुने मेरा हाथ थमा,
अ रब ख़ुशी के मारे
बहुत मे रोया
लगा कि अब तू मेरे साथ
है क्यों कि
मेरे हाथों में तेरा हाथ हां
मगर
मेरा हाथ तेरे हाथ से छुट गया
हर बार ओर मे ऐसा गिरा
कि में उठ ना सका
बार बार अब रास्ता
खत्म सा लगता है,
ओर मंजिल नही दिखती है
इसलिये में
तेरे आगोश में खोने आ रह हूँ
खुदा मे तेरी गोदी मे
सोने आ रह हूँ।
हर शख्स ने मुखोटा लगाया है ,
अन्दर से कुछ ओर,
बाहर से कुछ ओर,
हर शख्स नजर आया है ,
कहते है की हम आगे निकल आये है ,
ज़माने से,
कहीँ दूर,
मगर जब बात इन्सान की इज्जत की हो,
हर कोई झूठा ही मैने पाया ह,
खुद को पाक साबित करने वाले,
बातो बातो मै हँसी मजाक करने वाले,
जब खुद का अक्स ऐनक मै देखते है घबराते ह,
दूसरो की इज्जत को हाथ डालने वाले,
बात खुद पे आये तो बस घबरा जाते है ,
कितनी सफ़ेद पोश है
दुनिया हम जानते ह,
हमाम मै सबको नंगा ही खड़ा पाया है
सब सच को झूठ बनाने वाली दुनिया है ,
जूठे का ही बोलबाला है
मैने पाया ह,
हम मानते है
की कोई पाक नही है ,
इसलिये लोगो पर ऊँगली उठाने से पहले,
हर बार पहले खुद को आजमाया है।

क्या सच ही

क्या सच ही
उम्र के साथ इन्सान
अनुभव्युक्त हो जाता ह,
फीर क्यों चलते चलते
पथ पर धुन्दल्का सा छाता ह,
मैं भी चला
इस जीवन पथ पर
जीवन का अर्थ पाने को,
पर खुद को ही खो बैठा हू,
खोजूं क्या अब ज़माने को,
मेरी अन्तिम यात्रा
आरम्भ होने ही वाली है
उजले उजले दिन नही होते,
ना राते ही कलि है
सब कुछ इन अनुभवों से
परे सा मुझे नजर यूं आता है
ऐसा लगता है
मेरा इस जग से ना
कोई नाता हमे
इस जग का हुआ
ही कब था ,
जो आज मे जग मे समां पाऊंगा ?
मेरी सोच तो इस अधूरे पन से
कहीँ जायदा है,
इन सारी सोचो के पिछे,
उस पर ब्रह्म से नाता है
अब लगता ह
मेरा अंत निकट को आता है ...

क्यों राख बना डाला

मे जला
मेरे ख्वाब मेरे साथ जले,
मे रोया ,
मेरे ख्वाब मेरे साथ रोये,
मे चिलाया ,
पर तुम ना मेरे साथ रोये,
मैने जी जान से अपने लीया सपने संजोये,
पर तुने मेरे ख्वाबों को,
ना समझा मेरी बातो को,
कोई पागल कहा,
ओर दीवाना कहा,
इसलिये हर पल
मेरे साथ मेरे ख्वाब रोये,
तुमारे आंसू देख,
मे अपने आंसू पोंछ लेता हू
पर अकेले मे कभी रो दीया करता हू
फीर खुद से सवाल करता हू
जब मे एक इन्सान था ,
तो ख्वाब दिए क्यों थे?
क्यों बेटा बना कर पला मुझे ?
अपने आंगन मे बाबुल तुने,
क्यों खिलाया,
मार क्यों ना डाला मुझे?
जो मेरी खुशियाँ तेरी आबरू की मौत थी
तो क्यों ना जीते जी जला दल मुझे?
मेरे ख्वाबों के ही साथ मे?
क्यों ऐसे जिन्दगी दी की?
मे ना जी सका ,
ओर ना मर ही सका !
सिसकती एक आह को
क्यों राख बना डाला तुमने?

दर्द

दर्द मै यू डूबना मुझे भी भाता नहीं
मै जब भी कुछ मुस्कुराता हुआ सा
गीत लिखने बैठा हू
मेरी बेबसी के आंसू बरबस निकल आते ह
की मैं जो पाने चला tha
वो पा ना सका
ओर जाने किस नशे
मै खुद को खो बैठा हू.

मै भी इंतजार मे हू के,
किस दिन मेरी जिन्दगी
दर्द के समंदर से नहा कर निकलेगी
उस दिन मे भी खुद को इस बेपनाह
दर्द से बाहर
पर कर अपनी वास्तविक
खूबसूरती को देख सकूँगा।
चाहत के पुष्प चढाये हमने
पीड़ाओं के मन्दिर में
फिरते रहे तेरी परछाई खोजते
आकांक्षाओं के खण्डहर में
कई बार डूबकर देखा हमने
विरह की गहराईयों में
मिला न कोई हीरा-मोती
इस दर्द के समन्दर में..........

यह यातनाओं का सफर
और लम्बे चौड़े फ़ासले
लँगडाकर चलते है अब तो
दुःख- दर्द के ये क़ाफिले
ढोयेंगी कब तक हमें
साँसों की बैसाखियाँक्यों नही
अब टूट जाते
हसरतों के ये सिलसिले ॰॰॰॰

तेरे सूखे वादों से
दिल की धरती हुई न नम
बिन रिमझिम के निकल गया
इंतज़ार का यह मौसम
ठंडी हवा भी बंद हो गई
राह चलते अब जलते हैं
उड़ती धूल अब अपने सफ़र में
कहीं ज्यादा,
कहीं कम ॰॰॰॰ ।

जो पास रहे पत्थर से बनकर
वे कभी न समझें अपना ग़म
कभी न निकली इस सुन्दर साज़ से
कोई लय या कोई सरगम
जल से खाली मेघ थे जो
बारिश की उनसे आस लगाई
सोचें -अब माथा पकड़
कर कितने मूर्ख निकलें हम ॰॰॰॰ ।

Monday, September 3, 2007

होती नहीं रिहाई

उखड़ी- उखड़ी साँसें,
क़दम कदम रूसवाई
अंग अंग को डसती अब,
साँप साँप तनहाई ।

तपते जलते राहों में,
कदम कदम पर धूल
बूढे बूढे पेड़ों पर
सूखे सूखे फूल ।

टुकड़े टुकड़े आशा की
फड़ फड़ करती हँसी,
ज्यों पिंजरे में कैद कोई
पँख तोड़ता पंछी ।

इसी पिंजरें में बँद है
मैं और मेरी तनहाई,
छटपटाते है हम दोनों
होती नहीं रिहाई ।।"

दर्द अपने अपने

जीवन संग्राम में जूझते,
संघर्ष करते लोग
कभी रोते कभी हँसते
कभी मर मर जीते लोग ।

कभी सीनों में धड़कती
उम्मीदों की हलचल,
कभी बनते कभी टूटते
दिलों में ताजमहल ।

पत्थर जैसी परिस्थितियों के
बनते रहे पहाड़
भविष्य उलझा पड़ा है जैसे
काँटे- काँटे झाड़ ।

चेहरे पर अंकित अब
पीड़ा की अमिट प्रथा
हर भाषा में लिखी हुई
यातनाओं की कथा ।

जोश उबाल और आक्रोश
सीने में पलते हर दम
चुप चुप ह्रदय में उतरते
सीढी सीढी ग़म ।

दर्द की सूली पर टँगा
आज किसान औ' मज़दूरहै
सबके हिस्से आ रहे
ज़ख्म और ऩासूर ।

महबूबा से बिछुड़ा प्रेमी
खड़ा है शाम ढ़ले
ग़मों का स़हरा बाँध
करविरह की आग जले ।

कहीं निःसहाय विधवा सी
ठंडी ठंडी आह
कहीं बवंडर से घिरी सुहागिन
ढूँढे अपनी राह ।

आँगन में बैठी माँ बेचारी
दुःख से घिरी हर सू
भूख से बच्चे रो रहे
क़तरा क़तरा आँसू ।

बोझल बोझल है ज़िन्दगी
टुकड़े टुकड़े सपने
यहाँ तो बस पी रहे सभी
केवल दर्द अपने अपने ।।"

"मूमल"

मेरी सबसे अच्छी दोस्त,
मुझे सबसे पहले कलम पकड़कर "लिखना" सिखाया,
आज उसकी बारहवी बरसी है ।
आज ही के दिन वर्ष १९९५ मे एक सड़क दुर्घटना के बाद दिल्ली में उसका निधन हो गया।
जब वो हम सभी को छोड़कर जा रही थी, तब में उसके साथ ना था। ।




वो जा रही थी,
पर कोई भी ये मानने को तैयार ना था
उसकी साँसों की डोर टूट सी रही थी
उसका अंत सभी को साक्षात् दिख रहा था
पर फिर भी सभी लोग उसके लिये विधि से लड़ रहे थे
जान बचाने वाले जवाब दे चुके थे
पर फिर भी आस की एक किरण बाकी थी
हम उसे बचाने की नाकामयाब कोशिश कर रहे थे
उसका जाना तय था,
पर हमें ये मंज़ूर न था
हम उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते थे
हम उसकी ज़िन्दगी उस उपर वाले से छीन लेना चाहते थे
और जब हमारी ये कोशिश
हमें नाकामयाब होती दिखाई दी
तो हम उसके लिये भीख माँगने लगे थे
जिसने कभी भूलकर भी भगवान का नाम न लिया था
वो भी सारी रंजिशे भूलकर बस राम राम रट रहा था
पर आज शायद आज वहाँ रहम का नामो-निशां न रह गया था
और आखिर वो घडी आ ही गई
उसके जीवन की डोर हमारे हाथों से फिसलती प्रतीत हुई
और अंततः छूट गई
वो आँसुओं का सैलाब जो हम सब की आँखों
मे दबा थायकायक फूट पड़ावो जा चुकी थी,
हम सबको छोड़कर,
इस जहां को छोड़
अमनो-चैन की उस दूसरी दुनिया में
उसके मुख पर वो चिर-परिचित मुस्कान थी
जैसे वो हमारे रोने का परिहास उड़ा रही हो
कितने इत्मीनान से उतार फेंका था,
उसने ज़िन्दगी का चोला
और मौत का जामा पहन लिया था
वह पीछे छोड़ गई थी,
एक अजीब सा खालीपन,
"मूमल" एक रिक्तता,
एक सन्नाटा............"

यहाँ अँधेरा है ॰॰॰

"अपनी मुस्कुराहटों की रोशनी फैला दो,
यहां अँधेरा है ॰॰॰

हँसती हुई आँखों के दो चिराग जला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰

बहुत दिनों से इस कमरे में
अमावस का पहरा है
अपने चमकते चेहरे से इसे जगमगा दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰

खिलखिलाते हो,
तो होंठों सेफूटती है फूलझड़ियाँ,
अपने सुर्ख होंठों के दो फूल खिला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰

कहाँ हो,
किधर हो,
ढूँढता फिरता हूं,
कब से तुम्हे
ज़रा अपनी पद-चाप सुना दो
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰
बेरंग और बुझा सा खो गया हूँ,

गहरे तमस में
आज दीवाली का कोई गीत गुनगुना दो
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰

हँसती हुई आंखों के
दो चिराग जला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰।"

जब नयी राह चलने लगे ......

जीवन के इक मोड़ पर,
जब नयी राह चलने लगे
तेरी आँखों के चिराग
इस दिल मे जलने लगे ।

दर्द जो तूने दिया,
उसके लिये तेरा शुक्रिया
अब तो अपने जिस्म में
कई रंग घुलने लगे ।

मुरझा रहे इस पेड़ को
तूने दिया जो गंगाजल,
अब तो अपने चारों तरफ
फूल ही फूल खिलने लगे ।

बारिशों के मौसम में
तुम भी बरसे इस तरह
पुराने ज़ख्मों के दाग सब
अब धीरे धीरे धुलने लगे ।

Friday, August 24, 2007

दोस्तों से

ख़ुशी भी दोस्तों से है,
गम भी दोस्तों से है,

तकरार भी दोस्तों से है,
प्यार भी दोस्तों से है,

रूठना भी दोस्तों से है,
मनाना भी दोस्तों से है,

बात भी दोस्तों से है,
मिसाल भी दोस्तों से है,

नाश भी दोस्तों से है,
शाम भी दोस्तों से है,

जिन्दगी कि शुरुवात भी दोस्तों से है,
जिन्दगी में मुलाकात भी दोस्तों से है,

मोहब्बत भी दोस्तों से है,
इनयात भी दोस्तों से है,

काम भी दोस्तों से है,
नाम भी दोस्तों से है,

ख़याल भी दोस्तों से है,
अरमान भी दोस्तों से है,

खवाब भी दोस्तों से है,
माहौल भी दोस्तों से है,

यादें भी दोस्तों से है,
मुलाकातें दोस्तों से है,

सपने भी दोस्तों से है,
अपने भी दोस्तों से है,

या यूँ कहूं यारों,
अपनी तो दुनिया ही दोस्तों से है.....

याद आएंगे यह पल

हम रहे या ना रहे कल
कल याद आएंगे यह पल ,
पल यह हैं प्यार के पल,
चल आ मेरे संग चल,
चल सोचे क्या,
छोटी सी है जिन्दगी ,
मिल जाये तो होगी खुशनसीबी
हम रहे या ना रहे,
याद आएंगे यह पल।

शाम का आँचल ओढ़कर के आयी,
देखो वो रात सुहानी,
आ लिख दे हम दोनों मिलके,
यह प्रेम कहानी,
हम रहे या ना रहे,
याद आएंगे यह पल,
आने वाली सुबह जाने,
रंग क्या लाए दीवानी,
मेरी चाहत को रख लेना,
जैसे कोई निशानी,
हम रहे या ना रहे,
याद आएंगे यह पल,
हम रहे या ना रहे कल।

कल याद आएंगे यह पल,
पल यह हैं प्यार के पल,
आ मेरे संग चल,
छोटी सी है जिन्दगी ,
मिल जाये तो होगी खुशनसीबी
हम रहे या ना रहे,
आएंगे यह पल।

Thursday, August 23, 2007

टूटती हसरतें

जिंदगी के सफ़र में कहीँ तो रात होगी,
गर्म हवाओ के बाद कभी तो बरसात होगी,
सुन्हेरी सुबह कि शरुआत होगी,
अमावस कि रात है,
फिर चांद तारों कि बरसात होगी।


वक्त के थपेड़ों से बदल गया सारा जहाँ,
इन्सान को इन्सान ही नही पहचानता,
ये आज का दौर है ही ऐसा,
जहाँ भी देखो बदलते हालात होंगे।

पुराने यादें फिर आज जेहन में उभरी हैं,
अँधेरी खामोशी चारों और बिखरी है,
जी रहे हैं अब तक इस उम्मीद में,
कभी तो दिलबर से दिल कि बात होगी।

जिंदगी का अब ना कोई ऐतबार है,
मौत के आने का बस इंतज़ार है,
इसी हसरत के दम पर थे अब तक जिंदा,
कभी ना कभी किसी ना किसी,
मोड़ पर जिंदगी से मुलाक़ात होगी।

नफरत कि आग में रूह भी तबाह हो गयी है,
शराफत इस ज़माने में गुनाह हो गयी है,
मिटा के इस दौर को लाना है ऐसा शमा,
जहाँ हर दिल में मोह्बात कि सोगात होगी।

कौम नही होता है उस जन्मे हुए बच्चे का,
येः तोहफा तो उससे खुद आदमी देता है,
शैतान को इन्सान बनाती है इंसानियत,
कया उसका मजहब कया उसकी जाती होती है क्या।

टूटने से बच जाये ग़र यह हमारा वतन,
आबाद हो जाये फिर से गुल्सन येः चमन,
तो येः कुछ और नही सिर्फ,
खुदा का करिश्मा,
उसकी रहमत होगी।

Wednesday, August 22, 2007

आगे बढ़ता रहूंगा

दीपक हूँ जलता रहूंगा,
समय कि आँधियों से हर समय लड़ता रहूंगा.

काँटों भारी राह पर चलकर जिंदगी के पथ गढ़ कर,
पत्थरों के ढ़ेर पर सतत् चलता रहूंगा,
अस्तित्व को मेरे मिटा, तोड़ दे संकल्प मेरा,
तोड़कर सारी शिलाएं में अडिग बढता रहूंगा।

राह के कांटे भी सारे फूल बन कर बिछ गए हो जैसे,
में समय को साथ लेकर हर डगर पर बढता रहूंगा,
देख सहस मेरा सब दिशाएं थम सी गयी हो जैसे,
में पवन को भी साथ लेकर जिंदगी के पथ पर चलता रहूंगा।

इश का वरदान पाकर, शाप को दूंगा चुनोती,
कौन रोकेगा मेरी राह को, में सदा बढता रहूंगा।
गरुड़ सा लेकर वाहनं और विधि का लेकर ज्ञान,
कर विह्फल साड़ी दिशाएं में निडर बढता रहूंगा।

सत्य का प्रकाश लेकर और विधि का साथ देकर,
हर कदम मेरा किनारे के धेय्य तक बढता रहेगा,
कल्पनायों का आभास कर राह के कठिनायिओं को सहकर,
दूर होते भी किनारा, में निर्भय होकर चलता रहूंगा।

दर्द में किसको सुंनाउँ, कौन देगा साथ मेरा,
में स्वयम संकल्प के पथ पर सतत् बढता रहूंगा,
में अजय भी अभय भी हूँ, फिर पराजय क्यों होऊंगा,
में विजय का पताका ले अंत तक चलता रहूंगा।

में कभी हरा भी पर नही हरा कभी भी साहस,
लेकर वफ़ा को साथ हमेशा चलता रहूंगा,
बात जो करते सलाह कि पंकितियाँ लिखते वफ़ा कि,
उन कठिन राहों पर चलकर पथ कि और बढता रहूंगा।

दीपक हूँ जलता रहूंगा,
में समय कि आँधियों से अंत तक लड़ता रहूंगा।

Tuesday, August 21, 2007

रिश्ते तूफां से

हमने तूफां अपना,
खुद चुना है
साहिल न हो,
पतवार न हो,
तो क्या।

हम ही तूफां हैं,
साहिल हैं,
पतवार हम हैं।

यह क्या कम है कि,
मौजे रवां हम हैं
तूफां हम हैं
पतवार हम हैं।

वर्ष दो वर्ष,
जिन्दगी
एक नये मोड़ परघूम जाती है
वो कैसे लोग हैं कि सीधी सड़क पर
चले जा रहें हैं
हमने हर मोड़
पर एक नया तर्न्नुम पाया
-संगीत जिन्दगी कागाते चले।

तुम दूर चले जाओगे,
तो क्यातुम याद आओगे,
तो क्यातुम भूल जाओगे,
तो क्याजिन्दगी यही याद,
भूल,
आसरा है नये रिश्तों में,
तूफां मे चलो नहीं
किसी नाव को तूफां में ठेलो नहीं
कोई
तूफां कोई रिश्ते बहती रेत में नहीं
उठते बनते ऐसे तूफां के सपने संजोओ नहीं
जिसकी इक लहर का दूसरी से
कोई रिश्ता न होन जाने
कितने संग ओ साथीके बादएकाकी जीवन पाया है।

एक समय था
कि साथ छॊड़ जाते थे हम
अब है कि नये साथ खोजते हैं।

हमने सोचा था
कि जीवन एकाकी है
न जाने
कब किसने नये साथ की आहट दी है।

यह आहट सुनों न
हीं इस साथ में भटको नहीं
साथ अपने एकाकीपन का संगीत
अपनी रुह का गाते चलो निभाते चलो।

इक तारे को औरों की हवा
से न छेड़ो
इसका संगीत नायाब है
अनमोल है इसे नये रिश्तों से,
न जोड़ो।

जीवन

यह जीवन एक सफर है,
सुख दुख का भंवर है,
सबके जीवन की दिशा अलग है,
लोग अलग परिभाषा अलग है।

पृथक पृथक है उनके भाव,
वेश अलग अभिलाषा अलग है।

कोई जीता है स्व के लिये,
तो कोई जीवित है नव के लिये,
कहीं दिलों में प्रेम की इच्छा,
तो कहीं है जीत का जज़्बा,
कहीं सांस लेते हैं संस्कार,
तो कहीं किया कुकर्मों ने कब्ज़ा।

कहीं सत्य नन्हीं आँखों सेसूर्य का प्रकाश ढूँढ रहा,
तो कहीं झूठ का काला बादल,
मन के सपनों को रूँध रहा।

मैंने देखा है सपनों को जलते,
झुलसे मन में इच्छा पलते,
जब मन को मिलता न किनारा,
ढूँढे वह तिनके का सहारा,
सपनों की माला के मोती,
बिखरे जैसे बुझती हुई ज्योति।

दिल में एक सवाल छुपा है,
माँगे प्रभु की असीम कृपा है,
आज फिर से जीवन जी लूँ,
मन में यह विश्वास जगा है।

धूप छाँव तो प्रकृति का नियम है,
जितना जीवन मिले वो कम है,
आज वह चाहता है जीना,
न झुके कभी,
ताने रहे सीना,
जीवन का उसने अर्थ है जाना,
जाना ब्रह्माण्ड का संक्षिप्त स्वयं है।

जिंदगी

जिंदगी हुकुम सूना देती है
जो भी जी चाहे
साजा देती है
जिससे उम्मीद नही होती बिल्कुल
बस वही चीज़ दगा देती है।

आंख के आँसू भी ना धुलने पाए
उस से फेल कुछ और रुला देता है
जब भी कर्ता हूँ
में कोशिश संभलने का
मेरे क़दमों को जरा और लड्खडा देती है।

जब भी चाहा है सितारों सा
चमकाना मैंने
मेरे घ का नन्हा दीपक भी
वोह मुझे बुझा देता है
नादा दुनिया के दस्तूर पर
आती है मुझे हंसी मुझको

हर शाम मुझे रोने कि वजह देती है
मेरी मासूम सी हसरतों ना छोडो दामन मेरा
है कही एक धड़कन जो सदा देती है
बस यही एक ख्वाइश है जीने के लिए
थोड़ी उम्मीद जो दिल में जग देती है।

जिंदगी हुकम सुना देती है।
चेहरे बदलने का हुनर मुझमैं नहीं ,
दर्द दिल में हो तो हसँने का हुनर मुझमें नहीं,
मैं तो आईना हुँ तुझसे तुझ जैसी ही मैं बात करू,
टूट कर सँवरने का हुनर मुझमैं नहीं ।

चलते चलते थम जाने का हुनर मुझमैं नहीं,
एक बार मिल के छोड जाने का हुनर मुझमैं नहीं ,
मैं तो दरिया हुँ ,
बेहता ही रहा ,
तुफान से डर जाने का हुनर मुझमैं नहीं ।

सरहदों में बंट जाने का हुनर मुझमैं नहीं ,
अंधेरों में खो जाने का हुनर मुझमैं नहीं ,
मैं तो हवा हुँ ,
महकती ही रह ,
आशिंयाने मैं रह पाने का हुनर मुझमैं नहीं ।

सुन के दर्द और सताने का हुनर मुझमैं नही ,
धर्म के नाम पर खुन बहाने का हुनर मुझमैं नहीं ,
मैं तो इन्सान हुँ ,
इन्सान ही रहूँ ,
सब कुछ भुल जाने का हुनर मुझमैं नहीं ।

औरों के दम पे जगमगाने हुनर मुझमैं नहीं ,
मैं तो दिन में ही दिखुंगा,
रात में दिख पाने का हुनर मुझमैं नहीं ,
मैं तो सूरज हूँ अपनी ही आग से रोशन,
चाँद की तरह रोशनी चुराने का हुनर मुझमैं नहीं ।

सुख में खो जाने का हुनर मुझमैं नहीं ,
दुख में घबराने का हुनर मुझमैं नहीं ,
मैं तो जिन्दगी हुँ चलती ही रहुँ ,
व़क़्त पर साथ छोड जाने हुनर मुझमैं नहीं ।

i want to say to all my friends....

मिलेगा जहाँ जब कोशिश करोगे ,
चमकेगा आसमा जब आतीश बनोगे,
बस कुछ लम्हे ना बनकर रह जाना तुम यहाँ,
बात तो तब होगी जब किसी की ख़्वाहिश बनोहोता है

असर बातो का ज़माने को झुकने का बहाना दो,
अपने सरफ़रोश इरादो को कामयाबी का ठिकाना दो,
काँपते है जमी और आसमा बस एक तूफ़ान चाहिए,
लोगो की कुछ फ़ार्माइशों पर अपनी फ़तह का फ़साना दो.

तुम्हे ख़ाक करने से तो आग भी डरती है,
फिर छोटी सी मुश्किल क्या मंसूबे लेकर जीती है,
अरे तुम तो उड़ते हो अक्सर उसी आकाश में,
जिसे छुने को अक्सर ये दुनिया तरसती है.