Thursday, November 22, 2007

सपनो से कहीं ख़ूबसूरत यार हमने पाया,
नय्मत उस खुदा कि जिसने तुम्हे बनाया,
खुशगवार है कितना आज ये दिन,
बहुत बहुत मुबारक तुम्हे ये जन्मदिन.........

भटकता था कहीं मंजिल कि खोज मैं,
रस्ते पर चलना उस हमसफ़र ने सिखलाया,
दूर था खुदा कि रहमत से अब तक,
सुकून उसके दामन का तुमने महसूस करवाया

आये ये खुशियों भरा दिन बार बार क्योंकि
आज इस दुनिया मैं आया था
मेरा प्यार..........

एक पल है जाता और दूजा है आता,
पूछे मन बावरा,
ये थम क्यों न जाता,
क्या है कोई नुस्खा कि समय के पार मैं जाऊ,
दामन मैं मेरे यार के थोडी खुशियाँ और सजांऊं,
जन्मदिन कि हार्दिक शुभकामनाये..........
हर दौड की वही मंिजल है पाता,
हर चहरा एक सा नजर है आता,
हर आवाज में स्वर एक है सुनता,
ये बावरा मन बस तुम्हें है ढूंढता
तनहाइयों को गले हैं लगाते,
खयालों में तस्वीर हैं बनाते,
याद कर भरी महिफल में हैं शरमाते,
बेचैन इस कदर,
करवटों में रात हैं बिताते
इब्तदा-ए-इश्क है रोता है क्या,
आगे-आगे देख होता है क्या
ख्वाब न हो तो कहाँ होगी मंिजल,
मंिजल न हो तो कहाँ होंगे रास्ते,
रास्ते न हो तो कहाँ होगी अारजू़,
अारजू़ न हो तो कैसी होगी िजं़दगी

चाहत न हो तो कैसे होगी बेकरारी,
बेकरारी न हो तो कहाँ होगा इंतजा़र,
इंतजा़र न हो तो कैसे होगी िमलने की खूशी,

खूशी न हो तो कैसी होगी िजं़दगी
तन्हा न हो तो क्यों रोएगा िदल,
िदल न रोए तो कैसे होगा द्रद,
द्रद न हो तो कैसे होगा अहसास िमठास का,

िबन िमठास कैसी होगी िजं़दगी
नजा़कत न हो तो कहाँ होगी वो अदा,
अदा न हो तो कहाँ होगी खूबसूरती,
खूबसूरती बगैर कैसा होगा बालम,

बालम के बगैर कैसी होगी िजं़दगी
िदवानगी न हो तो कैसे होगा जूनूं
,जूनूं न हो तो कैसे होगी रवानगी,
रवानगी न हो तो कैसे रहेगा ग्रम लहु,

िबन ग्रम लहु के थम जाएगी िजं़दगी
This heart
Reading those few word from her
my heart starts beating harder worries fade,
sadness turnes into a smile

This heart plays emotional games
Beautiful thoughts tingle my सोल
Leave it!
Cries someone again and again
Befuddled,
I laugh at my situation,
cursing dunno why,
this heart plays emotional games
not something which happens only once,
comes back again like spring seasons,
may end peaceful this time though,
this heart will again play emotional games.
ये िदलपढ कर वो चंद शब्द उनकेे,
अहसास धडकनो का लगे बढ़ने,
होठ़ों पर आ जाए िभनी सी मुस्कान,
ये िदल खेले भावनाअों से खेल ।

छेड़ें मन के तार कुछ ख्याल,
अूंहूं छोड़ो इसे...
, कहे कोइ बार बार,
इस अजीब उलझन में पडे़ लगूँ हंसने,
जाने क्यों खेले ये िदल भावनाअों से खेल ।

िकस्सा नहीं ये िसर्फ इस बार का,
लोट़ अाता है जैसे मौसम बहार का,
अभी तो शायद ये जाए बीत,
परिफर खेलेगा ये िदल भावनाअों से खेल ।
वो कहे िक हम
िशकवे बहुत हैं करते
,अौर साथ ही खुशी का इज़हार कम हैं करते,
अौर बदलने िक कोिशश भी ंनही करते,
हमारी उनसे ैहैं,
इक गुज़ािरश कि इन
होठों पर है मुस्कान अौर शब्द सर्द,
कर मत ये ग़म ग़लक हो के बेखबर,
रात अौर िदन,
आँसूं अौर हंसी,
जी ले एक भरपूर,
पाएगा दूसरा तभी,
िछपा न खुदको इनकी आगोश में,
खुल कर बाहर न आ पाएगा तू कभी ।
तुम में है
अनंत का सार,
तुम देती ॐ को आकार,
जमों तो लो िशव-िलंग का रूप,
िपघलो तो हो अमिर्त,
इक जीवन स्वरूप ।
िहमालय िक चोटी पर तुम हो सवार,
करना चाहे ये िदल एक साक्शातकार,
िकसी ने ये भी खूब कहा है,
िकदूर इतनी िक पास जाना है
किठन,िमले तो, मौत भी गवारा उस िदन ।
सांसों से है िजंदगी का आधार,
शब्दों में है िजंदगी का सार,
संगीत से है िजंदगी में खूबसूरती,
िबना पंक्ित के लगती ये अधूरी ।
इक िदन बादलों िक छाई हुई थी घटा घनघोर,
हो के मदमस्त नाच उठे छत पर मनमोहक मोर,
जाने क्यों लगा िक ले गया मन का चैन कोई िचत्तचोर,
रह गया मैं स्तब्ध हत्तपर्भ,
मचा भी न सका शोर ।

कुछ पल के िलए हुआ परेशान,
क्यों िक,
ढूँढ पाना उसको नहीं था आसान,
अचानक हुआ एक ये अहसास,
शायद हो वो यहींं कहीं आस पास ।

परेशानी और डर ने था मन को घेरा,
िक कहीं िकसी ने हम पर जादू-मन्तर तो नहीं है फेरा,
ऐसे में उस खास दोस्त का आना,
और प्यार से बैठा ेके समझाना ।

िक होता है सभी को िजंदगी में एक बार,
लुट जाती है रातों िक नींद और िदल का करार,
ऐसी हालत में ठीक नहीं चुप्पी साधे रहना,
ना तो कभी ना लौटेगा िदल का सुख और चैना ।

नाम न जानूं पता न जानूं,
अजब उलझी ये गुत्थी है,
सुलझाने िक कोिशश में,
फंस जाती ये उतनी है ।

पर मन में उसकी अधूरी सी छवी है,
िक मानोसर्द मौसम के धुंधलाए शीशे के पार खडी है,
क्यों मैं अपने आप को झुटला रहा हूँ,
जाने क्यों सच्चाई से पीछा छुडा रहा हूँ ।

िहम्मत जुटाई बढ़ कर शीशे को पौंछने की,
बोला कोई,
नहीं जरूरत अब कुछ सोचने िक,
देर न कर,
अपनी तृष्णा को शांत कर ले,
हठी न बन,
इकरार कर ले ।

हटाते ही वो पानी िक बूँदें,
िसर चकरा कर लगा घूमने,
ये क्या हो गया था मुझको िक,
अब तक पहचान भी न सका उसको ।

वो कहते हैं, देर आए दुरूस्त आए,
देख कर उन्हें अगले िदन,
थोड़ा शरमाए घबराए,
ईशारे कुछ ना कुछ तो कह गए,
चुप चाप ही हम खड़े रह गए ।

अचानक प्यार से िकसी ने पुकारा,
कहीं तो ध्यान भटक गया है तुम्हारा,
बािरश का आनंद तो लो ही,
पर गरमा-गरम चाय-पकोड़े चखो तो सही ।