Wednesday, August 22, 2007

आगे बढ़ता रहूंगा

दीपक हूँ जलता रहूंगा,
समय कि आँधियों से हर समय लड़ता रहूंगा.

काँटों भारी राह पर चलकर जिंदगी के पथ गढ़ कर,
पत्थरों के ढ़ेर पर सतत् चलता रहूंगा,
अस्तित्व को मेरे मिटा, तोड़ दे संकल्प मेरा,
तोड़कर सारी शिलाएं में अडिग बढता रहूंगा।

राह के कांटे भी सारे फूल बन कर बिछ गए हो जैसे,
में समय को साथ लेकर हर डगर पर बढता रहूंगा,
देख सहस मेरा सब दिशाएं थम सी गयी हो जैसे,
में पवन को भी साथ लेकर जिंदगी के पथ पर चलता रहूंगा।

इश का वरदान पाकर, शाप को दूंगा चुनोती,
कौन रोकेगा मेरी राह को, में सदा बढता रहूंगा।
गरुड़ सा लेकर वाहनं और विधि का लेकर ज्ञान,
कर विह्फल साड़ी दिशाएं में निडर बढता रहूंगा।

सत्य का प्रकाश लेकर और विधि का साथ देकर,
हर कदम मेरा किनारे के धेय्य तक बढता रहेगा,
कल्पनायों का आभास कर राह के कठिनायिओं को सहकर,
दूर होते भी किनारा, में निर्भय होकर चलता रहूंगा।

दर्द में किसको सुंनाउँ, कौन देगा साथ मेरा,
में स्वयम संकल्प के पथ पर सतत् बढता रहूंगा,
में अजय भी अभय भी हूँ, फिर पराजय क्यों होऊंगा,
में विजय का पताका ले अंत तक चलता रहूंगा।

में कभी हरा भी पर नही हरा कभी भी साहस,
लेकर वफ़ा को साथ हमेशा चलता रहूंगा,
बात जो करते सलाह कि पंकितियाँ लिखते वफ़ा कि,
उन कठिन राहों पर चलकर पथ कि और बढता रहूंगा।

दीपक हूँ जलता रहूंगा,
में समय कि आँधियों से अंत तक लड़ता रहूंगा।