उखड़ी- उखड़ी साँसें,
क़दम कदम रूसवाई
अंग अंग को डसती अब,
साँप साँप तनहाई ।
तपते जलते राहों में,
कदम कदम पर धूल
बूढे बूढे पेड़ों पर
सूखे सूखे फूल ।
टुकड़े टुकड़े आशा की
फड़ फड़ करती हँसी,
ज्यों पिंजरे में कैद कोई
पँख तोड़ता पंछी ।
इसी पिंजरें में बँद है
मैं और मेरी तनहाई,
छटपटाते है हम दोनों
होती नहीं रिहाई ।।"
Monday, September 3, 2007
दर्द अपने अपने
जीवन संग्राम में जूझते,
संघर्ष करते लोग
कभी रोते कभी हँसते
कभी मर मर जीते लोग ।
कभी सीनों में धड़कती
उम्मीदों की हलचल,
कभी बनते कभी टूटते
दिलों में ताजमहल ।
पत्थर जैसी परिस्थितियों के
बनते रहे पहाड़
भविष्य उलझा पड़ा है जैसे
काँटे- काँटे झाड़ ।
चेहरे पर अंकित अब
पीड़ा की अमिट प्रथा
हर भाषा में लिखी हुई
यातनाओं की कथा ।
जोश उबाल और आक्रोश
सीने में पलते हर दम
चुप चुप ह्रदय में उतरते
सीढी सीढी ग़म ।
दर्द की सूली पर टँगा
आज किसान औ' मज़दूरहै
सबके हिस्से आ रहे
ज़ख्म और ऩासूर ।
महबूबा से बिछुड़ा प्रेमी
खड़ा है शाम ढ़ले
ग़मों का स़हरा बाँध
करविरह की आग जले ।
कहीं निःसहाय विधवा सी
ठंडी ठंडी आह
कहीं बवंडर से घिरी सुहागिन
ढूँढे अपनी राह ।
आँगन में बैठी माँ बेचारी
दुःख से घिरी हर सू
भूख से बच्चे रो रहे
क़तरा क़तरा आँसू ।
बोझल बोझल है ज़िन्दगी
टुकड़े टुकड़े सपने
यहाँ तो बस पी रहे सभी
केवल दर्द अपने अपने ।।"
संघर्ष करते लोग
कभी रोते कभी हँसते
कभी मर मर जीते लोग ।
कभी सीनों में धड़कती
उम्मीदों की हलचल,
कभी बनते कभी टूटते
दिलों में ताजमहल ।
पत्थर जैसी परिस्थितियों के
बनते रहे पहाड़
भविष्य उलझा पड़ा है जैसे
काँटे- काँटे झाड़ ।
चेहरे पर अंकित अब
पीड़ा की अमिट प्रथा
हर भाषा में लिखी हुई
यातनाओं की कथा ।
जोश उबाल और आक्रोश
सीने में पलते हर दम
चुप चुप ह्रदय में उतरते
सीढी सीढी ग़म ।
दर्द की सूली पर टँगा
आज किसान औ' मज़दूरहै
सबके हिस्से आ रहे
ज़ख्म और ऩासूर ।
महबूबा से बिछुड़ा प्रेमी
खड़ा है शाम ढ़ले
ग़मों का स़हरा बाँध
करविरह की आग जले ।
कहीं निःसहाय विधवा सी
ठंडी ठंडी आह
कहीं बवंडर से घिरी सुहागिन
ढूँढे अपनी राह ।
आँगन में बैठी माँ बेचारी
दुःख से घिरी हर सू
भूख से बच्चे रो रहे
क़तरा क़तरा आँसू ।
बोझल बोझल है ज़िन्दगी
टुकड़े टुकड़े सपने
यहाँ तो बस पी रहे सभी
केवल दर्द अपने अपने ।।"
"मूमल"
मेरी सबसे अच्छी दोस्त,
मुझे सबसे पहले कलम पकड़कर "लिखना" सिखाया,
आज उसकी बारहवी बरसी है ।
आज ही के दिन वर्ष १९९५ मे एक सड़क दुर्घटना के बाद दिल्ली में उसका निधन हो गया।
जब वो हम सभी को छोड़कर जा रही थी, तब में उसके साथ ना था। ।
वो जा रही थी,
पर कोई भी ये मानने को तैयार ना था
उसकी साँसों की डोर टूट सी रही थी
उसका अंत सभी को साक्षात् दिख रहा था
पर फिर भी सभी लोग उसके लिये विधि से लड़ रहे थे
जान बचाने वाले जवाब दे चुके थे
पर फिर भी आस की एक किरण बाकी थी
हम उसे बचाने की नाकामयाब कोशिश कर रहे थे
उसका जाना तय था,
पर हमें ये मंज़ूर न था
हम उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते थे
हम उसकी ज़िन्दगी उस उपर वाले से छीन लेना चाहते थे
और जब हमारी ये कोशिश
हमें नाकामयाब होती दिखाई दी
तो हम उसके लिये भीख माँगने लगे थे
जिसने कभी भूलकर भी भगवान का नाम न लिया था
वो भी सारी रंजिशे भूलकर बस राम राम रट रहा था
पर आज शायद आज वहाँ रहम का नामो-निशां न रह गया था
और आखिर वो घडी आ ही गई
उसके जीवन की डोर हमारे हाथों से फिसलती प्रतीत हुई
और अंततः छूट गई
वो आँसुओं का सैलाब जो हम सब की आँखों
मे दबा थायकायक फूट पड़ावो जा चुकी थी,
हम सबको छोड़कर,
इस जहां को छोड़
अमनो-चैन की उस दूसरी दुनिया में
उसके मुख पर वो चिर-परिचित मुस्कान थी
जैसे वो हमारे रोने का परिहास उड़ा रही हो
कितने इत्मीनान से उतार फेंका था,
उसने ज़िन्दगी का चोला
और मौत का जामा पहन लिया था
वह पीछे छोड़ गई थी,
एक अजीब सा खालीपन,
"मूमल" एक रिक्तता,
एक सन्नाटा............"
मुझे सबसे पहले कलम पकड़कर "लिखना" सिखाया,
आज उसकी बारहवी बरसी है ।
आज ही के दिन वर्ष १९९५ मे एक सड़क दुर्घटना के बाद दिल्ली में उसका निधन हो गया।
जब वो हम सभी को छोड़कर जा रही थी, तब में उसके साथ ना था। ।
वो जा रही थी,
पर कोई भी ये मानने को तैयार ना था
उसकी साँसों की डोर टूट सी रही थी
उसका अंत सभी को साक्षात् दिख रहा था
पर फिर भी सभी लोग उसके लिये विधि से लड़ रहे थे
जान बचाने वाले जवाब दे चुके थे
पर फिर भी आस की एक किरण बाकी थी
हम उसे बचाने की नाकामयाब कोशिश कर रहे थे
उसका जाना तय था,
पर हमें ये मंज़ूर न था
हम उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते थे
हम उसकी ज़िन्दगी उस उपर वाले से छीन लेना चाहते थे
और जब हमारी ये कोशिश
हमें नाकामयाब होती दिखाई दी
तो हम उसके लिये भीख माँगने लगे थे
जिसने कभी भूलकर भी भगवान का नाम न लिया था
वो भी सारी रंजिशे भूलकर बस राम राम रट रहा था
पर आज शायद आज वहाँ रहम का नामो-निशां न रह गया था
और आखिर वो घडी आ ही गई
उसके जीवन की डोर हमारे हाथों से फिसलती प्रतीत हुई
और अंततः छूट गई
वो आँसुओं का सैलाब जो हम सब की आँखों
मे दबा थायकायक फूट पड़ावो जा चुकी थी,
हम सबको छोड़कर,
इस जहां को छोड़
अमनो-चैन की उस दूसरी दुनिया में
उसके मुख पर वो चिर-परिचित मुस्कान थी
जैसे वो हमारे रोने का परिहास उड़ा रही हो
कितने इत्मीनान से उतार फेंका था,
उसने ज़िन्दगी का चोला
और मौत का जामा पहन लिया था
वह पीछे छोड़ गई थी,
एक अजीब सा खालीपन,
"मूमल" एक रिक्तता,
एक सन्नाटा............"
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰
"अपनी मुस्कुराहटों की रोशनी फैला दो,
यहां अँधेरा है ॰॰॰
हँसती हुई आँखों के दो चिराग जला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰
बहुत दिनों से इस कमरे में
अमावस का पहरा है
अपने चमकते चेहरे से इसे जगमगा दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰
खिलखिलाते हो,
तो होंठों सेफूटती है फूलझड़ियाँ,
अपने सुर्ख होंठों के दो फूल खिला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰
कहाँ हो,
किधर हो,
ढूँढता फिरता हूं,
कब से तुम्हे
ज़रा अपनी पद-चाप सुना दो
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰
बेरंग और बुझा सा खो गया हूँ,
गहरे तमस में
आज दीवाली का कोई गीत गुनगुना दो
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰
हँसती हुई आंखों के
दो चिराग जला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰।"
यहां अँधेरा है ॰॰॰
हँसती हुई आँखों के दो चिराग जला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰
बहुत दिनों से इस कमरे में
अमावस का पहरा है
अपने चमकते चेहरे से इसे जगमगा दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰
खिलखिलाते हो,
तो होंठों सेफूटती है फूलझड़ियाँ,
अपने सुर्ख होंठों के दो फूल खिला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰
कहाँ हो,
किधर हो,
ढूँढता फिरता हूं,
कब से तुम्हे
ज़रा अपनी पद-चाप सुना दो
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰
बेरंग और बुझा सा खो गया हूँ,
गहरे तमस में
आज दीवाली का कोई गीत गुनगुना दो
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰
हँसती हुई आंखों के
दो चिराग जला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰।"
जब नयी राह चलने लगे ......
जीवन के इक मोड़ पर,
जब नयी राह चलने लगे
तेरी आँखों के चिराग
इस दिल मे जलने लगे ।
दर्द जो तूने दिया,
उसके लिये तेरा शुक्रिया
अब तो अपने जिस्म में
कई रंग घुलने लगे ।
मुरझा रहे इस पेड़ को
तूने दिया जो गंगाजल,
अब तो अपने चारों तरफ
फूल ही फूल खिलने लगे ।
बारिशों के मौसम में
तुम भी बरसे इस तरह
पुराने ज़ख्मों के दाग सब
अब धीरे धीरे धुलने लगे ।
जब नयी राह चलने लगे
तेरी आँखों के चिराग
इस दिल मे जलने लगे ।
दर्द जो तूने दिया,
उसके लिये तेरा शुक्रिया
अब तो अपने जिस्म में
कई रंग घुलने लगे ।
मुरझा रहे इस पेड़ को
तूने दिया जो गंगाजल,
अब तो अपने चारों तरफ
फूल ही फूल खिलने लगे ।
बारिशों के मौसम में
तुम भी बरसे इस तरह
पुराने ज़ख्मों के दाग सब
अब धीरे धीरे धुलने लगे ।
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