"अपनी मुस्कुराहटों की रोशनी फैला दो,
यहां अँधेरा है ॰॰॰
हँसती हुई आँखों के दो चिराग जला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰
बहुत दिनों से इस कमरे में
अमावस का पहरा है
अपने चमकते चेहरे से इसे जगमगा दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰
खिलखिलाते हो,
तो होंठों सेफूटती है फूलझड़ियाँ,
अपने सुर्ख होंठों के दो फूल खिला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰
कहाँ हो,
किधर हो,
ढूँढता फिरता हूं,
कब से तुम्हे
ज़रा अपनी पद-चाप सुना दो
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰
बेरंग और बुझा सा खो गया हूँ,
गहरे तमस में
आज दीवाली का कोई गीत गुनगुना दो
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰
हँसती हुई आंखों के
दो चिराग जला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰।"
Monday, September 3, 2007
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