उखड़ी- उखड़ी साँसें,
क़दम कदम रूसवाई
अंग अंग को डसती अब,
साँप साँप तनहाई ।
तपते जलते राहों में,
कदम कदम पर धूल
बूढे बूढे पेड़ों पर
सूखे सूखे फूल ।
टुकड़े टुकड़े आशा की
फड़ फड़ करती हँसी,
ज्यों पिंजरे में कैद कोई
पँख तोड़ता पंछी ।
इसी पिंजरें में बँद है
मैं और मेरी तनहाई,
छटपटाते है हम दोनों
होती नहीं रिहाई ।।"
Monday, September 3, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment