Thursday, August 23, 2007

टूटती हसरतें

जिंदगी के सफ़र में कहीँ तो रात होगी,
गर्म हवाओ के बाद कभी तो बरसात होगी,
सुन्हेरी सुबह कि शरुआत होगी,
अमावस कि रात है,
फिर चांद तारों कि बरसात होगी।


वक्त के थपेड़ों से बदल गया सारा जहाँ,
इन्सान को इन्सान ही नही पहचानता,
ये आज का दौर है ही ऐसा,
जहाँ भी देखो बदलते हालात होंगे।

पुराने यादें फिर आज जेहन में उभरी हैं,
अँधेरी खामोशी चारों और बिखरी है,
जी रहे हैं अब तक इस उम्मीद में,
कभी तो दिलबर से दिल कि बात होगी।

जिंदगी का अब ना कोई ऐतबार है,
मौत के आने का बस इंतज़ार है,
इसी हसरत के दम पर थे अब तक जिंदा,
कभी ना कभी किसी ना किसी,
मोड़ पर जिंदगी से मुलाक़ात होगी।

नफरत कि आग में रूह भी तबाह हो गयी है,
शराफत इस ज़माने में गुनाह हो गयी है,
मिटा के इस दौर को लाना है ऐसा शमा,
जहाँ हर दिल में मोह्बात कि सोगात होगी।

कौम नही होता है उस जन्मे हुए बच्चे का,
येः तोहफा तो उससे खुद आदमी देता है,
शैतान को इन्सान बनाती है इंसानियत,
कया उसका मजहब कया उसकी जाती होती है क्या।

टूटने से बच जाये ग़र यह हमारा वतन,
आबाद हो जाये फिर से गुल्सन येः चमन,
तो येः कुछ और नही सिर्फ,
खुदा का करिश्मा,
उसकी रहमत होगी।

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