Tuesday, August 21, 2007

रिश्ते तूफां से

हमने तूफां अपना,
खुद चुना है
साहिल न हो,
पतवार न हो,
तो क्या।

हम ही तूफां हैं,
साहिल हैं,
पतवार हम हैं।

यह क्या कम है कि,
मौजे रवां हम हैं
तूफां हम हैं
पतवार हम हैं।

वर्ष दो वर्ष,
जिन्दगी
एक नये मोड़ परघूम जाती है
वो कैसे लोग हैं कि सीधी सड़क पर
चले जा रहें हैं
हमने हर मोड़
पर एक नया तर्न्नुम पाया
-संगीत जिन्दगी कागाते चले।

तुम दूर चले जाओगे,
तो क्यातुम याद आओगे,
तो क्यातुम भूल जाओगे,
तो क्याजिन्दगी यही याद,
भूल,
आसरा है नये रिश्तों में,
तूफां मे चलो नहीं
किसी नाव को तूफां में ठेलो नहीं
कोई
तूफां कोई रिश्ते बहती रेत में नहीं
उठते बनते ऐसे तूफां के सपने संजोओ नहीं
जिसकी इक लहर का दूसरी से
कोई रिश्ता न होन जाने
कितने संग ओ साथीके बादएकाकी जीवन पाया है।

एक समय था
कि साथ छॊड़ जाते थे हम
अब है कि नये साथ खोजते हैं।

हमने सोचा था
कि जीवन एकाकी है
न जाने
कब किसने नये साथ की आहट दी है।

यह आहट सुनों न
हीं इस साथ में भटको नहीं
साथ अपने एकाकीपन का संगीत
अपनी रुह का गाते चलो निभाते चलो।

इक तारे को औरों की हवा
से न छेड़ो
इसका संगीत नायाब है
अनमोल है इसे नये रिश्तों से,
न जोड़ो।

1 comment:

उन्मुक्त said...

अच्छी कवितायें हैं लिखते रहिये।