जिंदगी हुकुम सूना देती है
जो भी जी चाहे
साजा देती है
जिससे उम्मीद नही होती बिल्कुल
बस वही चीज़ दगा देती है।
आंख के आँसू भी ना धुलने पाए
उस से फेल कुछ और रुला देता है
जब भी कर्ता हूँ
में कोशिश संभलने का
मेरे क़दमों को जरा और लड्खडा देती है।
जब भी चाहा है सितारों सा
चमकाना मैंने
मेरे घ का नन्हा दीपक भी
वोह मुझे बुझा देता है
नादा दुनिया के दस्तूर पर
आती है मुझे हंसी मुझको ।
हर शाम मुझे रोने कि वजह देती है
मेरी मासूम सी हसरतों ना छोडो दामन मेरा
है कही एक धड़कन जो सदा देती है
बस यही एक ख्वाइश है जीने के लिए
थोड़ी उम्मीद जो दिल में जग देती है।
जिंदगी हुकम सुना देती है।
Tuesday, August 21, 2007
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