इस रात कि कोई सुबह नही
येः रात खतम होती ही नही
हर बार का काला अँधियारा
बढता ही जाता है
हर दिन को अपने में,
काले सायों में
भरता ही चला जाता हूँ,
अब ये रात कभी ख़त्म होगी ही नही
इंतज़ार ख़त्म हुआ
अब यहाँ
कोई उम्मीद कि किरण बची ही नही
अब मे पूरी ही टूट गया हूँ
अब के कभी जी पायूँगा नही
हसी मेरी विलुप्त हुई
गम के अमीन में अब डूब गया
हाथ कोई पक्डेगा नही
बस अलविदा कहता हूँ
अब तुझसे जिंदगी
बहुत जी कर देख चूका हूँ
अब मौत के सुखद आंगन में
खिलती मृत्यु कि गोद में
बस सो जायूँगा
ना जागने के लिए कभी,
अलविदा जिंदगी , अलविदा जिंदगी
Wednesday, September 5, 2007
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