Wednesday, September 5, 2007

क्यों राख बना डाला

मे जला
मेरे ख्वाब मेरे साथ जले,
मे रोया ,
मेरे ख्वाब मेरे साथ रोये,
मे चिलाया ,
पर तुम ना मेरे साथ रोये,
मैने जी जान से अपने लीया सपने संजोये,
पर तुने मेरे ख्वाबों को,
ना समझा मेरी बातो को,
कोई पागल कहा,
ओर दीवाना कहा,
इसलिये हर पल
मेरे साथ मेरे ख्वाब रोये,
तुमारे आंसू देख,
मे अपने आंसू पोंछ लेता हू
पर अकेले मे कभी रो दीया करता हू
फीर खुद से सवाल करता हू
जब मे एक इन्सान था ,
तो ख्वाब दिए क्यों थे?
क्यों बेटा बना कर पला मुझे ?
अपने आंगन मे बाबुल तुने,
क्यों खिलाया,
मार क्यों ना डाला मुझे?
जो मेरी खुशियाँ तेरी आबरू की मौत थी
तो क्यों ना जीते जी जला दल मुझे?
मेरे ख्वाबों के ही साथ मे?
क्यों ऐसे जिन्दगी दी की?
मे ना जी सका ,
ओर ना मर ही सका !
सिसकती एक आह को
क्यों राख बना डाला तुमने?

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