Thursday, November 22, 2007

हर दौड की वही मंिजल है पाता,
हर चहरा एक सा नजर है आता,
हर आवाज में स्वर एक है सुनता,
ये बावरा मन बस तुम्हें है ढूंढता
तनहाइयों को गले हैं लगाते,
खयालों में तस्वीर हैं बनाते,
याद कर भरी महिफल में हैं शरमाते,
बेचैन इस कदर,
करवटों में रात हैं बिताते
इब्तदा-ए-इश्क है रोता है क्या,
आगे-आगे देख होता है क्या

No comments: