तुम में है
अनंत का सार,
तुम देती ॐ को आकार,
जमों तो लो िशव-िलंग का रूप,
िपघलो तो हो अमिर्त,
इक जीवन स्वरूप ।
िहमालय िक चोटी पर तुम हो सवार,
करना चाहे ये िदल एक साक्शातकार,
िकसी ने ये भी खूब कहा है,
िकदूर इतनी िक पास जाना है
किठन,िमले तो, मौत भी गवारा उस िदन ।
Thursday, November 22, 2007
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